देखा मज़दूर किसान को

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Credit : Pexel

गली हुई हड्डियों से भरा हुआ,
हरेक लाखों में, एक सा खड़ा हुआ,
देखा अपने भारत के नाम को,
भूखों रह खून बहाता,मज़दूर-किसान को ।

कड़कड़ाती ठंड में ,काँपता हुआ,
चिलचिलाती धूप में, हाँफता हुआ,
हम भी इंसान है ? देखा इस माँग को,
दिलासों को ताकता, मज़दूर-किसान को ।

कराहों की गूँज को कहीं पहुँचाता हुआ,
नीरुत्तर प्रश्न के उत्तर तलाशता हुआ,
देखा सफ़ेदपोश ढोंगियों की नंगी स्वांग को,
सन्नाटे में रेंगती, दिल्ली के शाम को।
देखा अपने मज़दूर-किसान को-2

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