क्या बहुजन हितों एवं पसमांदा समाज की आवाज बनेंगे अफ़रोज़ आलम?

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छात्र राजद की तरफ से अफ़रोज़ आलम जेएनयूएसयू चुनाव के प्रेसिडेंट पोस्ट के उम्मीदवार हैं, बिहार के चंपारण के एक सामान्य परिवार से आने वाले पसमांदा मुस्लिम हैं। लेफ्ट और राइट पार्टीज के बाइनरी से इतर छात्र राजद एक बहुजन आवाज़ बुलंद कर रहा हैं जो कि अन्य मुद्दों के साथ ही साथ सोशल जस्टिस और जेंडर इक्वॉलिटी की बात कह रहा है । लेफ्ट के गढ़ में बहुजन समाज के हित की बात करते हुए अफ़रोज़ आलम बताते हैं कि वे किस प्रकार बिहार के चंपारण से निकल कर जेएनयू आए और अपने छात्र जीवन के दौरान बहुजन और पसमांदा हक़ की लड़ाई में भागीदार हुए।

विचारधारा आधारित संगठन

यह पूछने पर कि छात्र राजद किस प्रकार लेफ्ट और राइट से अलग है वे बताते है कि अपने शुरुआती दौर से ही यह संगठन बाबा साहेब, फुले, लोहिया, कर्पूरी, कलाम और कयूम के विचार पर खड़ा है और इसने कभी भी विचारधारा से समझौता नहीं किया है ।

लेफ्ट और राइट को चोट दो, बहुजन हितों को वोट दो- अफ़रोज़

जिसकी जितनी संख्या भारी उसकी उतनी हिस्सेदारी के नारों को बिहार से निकालकर दिल्ली के प्रतिष्ठित जेएनयू के छात्र राजनीति के डिसकोर्स में लाने का श्रेय छात्र राजद सरीखे बहुजन संघटन का ही रहा है । उनके अनुसार छात्र राजद के आने से वे बहुजन छात्र जिनकी मांगों को लेफ्ट राइट के राजनीती में कुचल कर रख दिया जाता रहा है उसे नई पहचान मिली है । अब ये दोनों पार्टियां मजबूर हुई है कि वे बहुजन मुद्दों की बात करे । यह पूछने पर कि इस बात से दिक्कत क्या है कि वे भी इस बात को आगे बढ़ा रहे है । अफ़रोज़ आलम कहते है कि सवाल यह नहीं है कि ये लोग मुद्दे उठाये बल्कि यह देखने की जरूरत है कि क्या इन मुद्दों के पीछे इनका इंटेशन है या नहीं । चिन्हुआ अचेबे के इस बात को कहते हुए कि वे अपनी बात पर विराम देते हैं कि जब तक शिकार का इतिहास, शिकारियों द्वारा लिखा जाएगा, तबतक वह शिकारियों का ही महिमामंदन करेगा ।