क्या ‘हाथी लेबे, घोड़ा लेबे’ भोजपुरी गीतों की बन सकती हैं एक नई उम्मीद ?

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Pic credit: BhojpuriT

जब भी हम भोजपुरी गीतों का जिक्र करते हैं, तो लोगों के चेहरे पर एक अजीब सी मुस्कान आ जाती है, और कई बार वह मुस्कान आपको असहज कर देती हैं। क्योंकि समाज में भोजपुरी गानों की छवि फूहड़, अभद्र, बना दी गई है। भोजपुरी गानों का मतलब एक विभिन्न प्रकार का डांस जो आप सबके बीच में देख शरमिंदा हो जाए, एक अजीबो-गरीब संगीत जिनका मधुरता, सहजता से कोई लेना देना न हो, एक ऐसा विषय जिसमें प्रेम का मतलब केवल वासना हो। लेकिन क्या भोजपुरी गाने शुरू से ही फूहड़ता, अभद्रता का प्रतीक हैं?

भोजपुरी  गाने  स्थानीयता के प्रतीक

भोजपुरी ने एक से एक संगीत दिए हैं, जिन्हें सुनकर, देखकर संगीत से प्रेम हो उठता है, उनमें से है, कौन दिशा में चले रे बटोहिया, काशी हिले, पटना हिले, जुग-जुग जियसु ललनवा, लाल-लाल होंठवा से बरसे ललिया, यहीं कहि  जिव्या हमार, कहवा के पियर माटी, कहवा के कुदार हो, आदि। लेकिन आज इन गानों को भोजपुरी समाज भूल चुका है,  जो एक समय स्थानीय संस्कृति के परिचायक थे। जिसमें बिहार- पूर्वी उत्तर प्रदेश के शादी-विवाह के रिवाज, बिहार की छठ परम्परा, स्थानीय खेत, खेत में रोमांस,  स्थानीय परिधान धोती-कुर्ता, पीली साड़ी को दर्शाया गया है। लेकिन आज के गानों को देखकर ऐसा लगता है कि मानो भोजपुरी संगीत जीजा-साली के रोमांस, देवर-भाभी के अप्रत्यक्ष रिश्ते, महिलाओं के शरीर पर टिप्पणी के लिए बना है, क्योंकि अधिकांश गाने इन्हीं विषयों से ताल्लुक़ रखते हैं।

भोजपुरी की इस दशा के बीच में हाल ही में एक गाना म्यूजिक लेबल, भोजपुरी टी (Bhojpuri T) के तहत रिलीज हुआ है, जिसका शीषर्क हैं, हाथी लेबे, घोड़ा लेबे, जिसके अभिनेता है दीपक ठाकुर, अभिनेत्री, उल्का गुप्ता, एवं इसकी गायिका हैं, प्रिया मलिक। इस गाने में तीन बातें रेखांकित करने लायक है, पहला की इस गाने में बहुत ही महत्वपूर्ण विषय को लिया गया है, जो है दहेज प्रथा जो कि सिर्फ बिहार की ही नही पूरे देश की समस्या है, जो केवल पिछड़े एवं अशिक्षित समाज मे नही फैला है वह शिक्षित समाज में भी प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से फैला हुआ है। इस गाने में यही बताया गया है कि यदि कोई लड़का सरकारी नौकरी वाला है और वह दहेज मांगता है जिसमें वह प्रतीकात्मक तौर पर हाथी-घोड़ा से लेकर हीरो होंडा तक डिमांड रखता है। जहाँ महिलाएं इसका जवाब देते हुए कहती है, हाथी लेबे, घोड़ा लेबे, लेबे हीरो होंडा, दिमाग हो जाइ ठंडा , जब  बजाइब चार डंडाअर्थात यदि कोई भी सरकारी बाबू ऐसी मांग रखता है तो महिलाएं इसका स्वागत न कर उसका प्रतिकार करेंगी। दूसरा इसमें लोक संस्कृति को दिखाया गया है जहाँ शादी-विवाह किसी भी शुभ काम में महिलाएं इकठ्ठा हो कर ढोलक-झाल पर लोकगीत, नृत्य करती हैं। तीसरा जो कि सबसे महत्वपूर्ण है कि पूरे गाने का फिल्मांकन बहुत ही सरल एवं सहज तरीके से किया गया है, जिसे देख कर आप कुछ सीख ले सकते हैं, या अपना मनोरंजन भी कर सकते हैं।

इस तरह के गाने आधुनिक भोजपुरी फ़िल्म निर्माता, गायक, प्रोड्यूसर्स के लिए एक सबक का काम करेंगी की बिना कोई ताम-झाम, महिलाओं का वस्तुकरण, ऊँचे बीट को किनारे रख कर भी किसी भी गाना या फ़िल्म का निर्माण किया जा सकता है। जिससे भोजपुरी का गौरव फिर से लौटे और भोजपुरी के प्रति संकीर्णता दूर हो और भोजपुरी केवल अपने बुलट प जीजा, पांडे जी का बेटा हूं, चुम्मा चिपक के लेता हूं के लिए न जाना जाए। भोजपुरी गीतों में स्थानीय संस्कृति, विस्थापन की समस्या, बदलते परिवेश में शादी-विवाह, राजनीति, आम जीवन भी दिखाया जाए।

-ऋतु