“भारत एक लोकतांत्रिक देश है, भारत में जनता के पास लोकतांत्रिक और मौलिक अधिकार जिंदा है और उम्मीद करते हैं कि भारत में आगामी चुनाव निष्पक्ष व स्वतंत्र वातावरण में होगा” , एंटोनियो ग्यूटरस(सेक्रेटरी जनरल, United Nations)
हाल ही में हुए दिल्ली के मुख्यमंत्री व आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल की गिरफ़्तारी धीरे धीरे भारतीय जनता पार्टी और जांच एजेंसियों के गले का फांस बनते जा रही है। पहले जर्मनी फिर अमेरिका और अब यूनाइटेड नेशन ने भी भारत में हो रहे लोकतंत्र पर प्रहार पर अपनी प्रतिक्रिया जताई है। क्या यह सभी भारत विरोधी हैं? हम इन्हें भारत विरोधी नहीं मानेंगे क्योंकि देश की मौजूदा हालात पर अगर विश्लेषण किया जाए तो देश में लोकतंत्र सबसे कमजोर जगह पर है। अगर हम ऐसे ही दूसरे देशों और यूनाइटेड नेशन तक में अपनी अंतराष्ट्रीय फजीहत कराते रहे तो हम कैसे विश्वगुरु बने रहेंगे?
जहां ED और CBI की तुलना दुनिया के बड़े बड़े जांच एजेंसियों से होनी चाहिए वहीं इन सब एजेंसियों पर सरकार की चाटुकारिता के आरोप लगते आ रहे हैं, यह बहुत शर्म की बात है की इतने महत्वपूर्ण जांच एजेंसियां politically motivated होते दिख रहे हैं। हम इन्हें politically motivated इसलिए भी कह पा रहे हैं क्योंकि इन्होंने एक पैटर्न बना रखा है। उदाहरण भी अगर देखा जाए तो
- केजरीवाल पर आरोप लगाने वाले P Sarath Chandra Reddy इसी मामले में जेल में बंद थे, उन्होंने पहले कहा की वो केजरीवाल से मिले तक नहीं हैं कभी, और उनपर केजरीवाल का नाम लेने के लिए दबाव बनाया जा रहा है, जाहिर है की ईडी के शिकंजे में रहे व्यक्ति पर बाहर से तो दबाव नहीं जा रहा होगा। बाद में उनका बयान बदल ही जाता है और केजरीवाल का नाम ले लेते हैं और सिर्फ बयान के आधार पर उनकी गिरफ्तारी हो जाती है और केजरीवाल के वकील ने इसे कोर्ट में पीएमएलए के नियमों का उल्लंघन भी बताया है। सबसे महत्वपूर्ण पहेली तो ये है कि इनकी कंपनी ने बेल के वक्त भारतीय जनता पार्टी को 55 करोड़ का चंदा भी दिया है, 55 करोड़ क्यों दिए इन्हें और इसे देते ही बेल कैसे मिल गई ये सोचने वाली बात है लेकिन इसपर कोई भी मीडिया हाउस कुछ नहीं बोल रहा है, क्योंकि कई सारे मीडिया हाउस खुद ही भारतीय जनता पार्टी को चंदा दे बैठे हैं।
- ऐसे ही दिल्ली शराब घोटाला मामले में एक और नाम है, राघव मगुंटा रेड्डी, आंध्रप्रदेश के एक नेता के बेटे हैं और इनका भी ऐसा ही पैटर्न है कि जैसे ही ये सरकारी गवाह बने इनका भी बेल मिल जाता है और अब तो चर्चा ये भी है कि इन्हें लोक सभा चुनाव 2024 में NDA से टिकट भी मिलने वाली है, अगर वो दोषी हैं तो भाजपा उन्हें टिकट क्यों दे रही है? क्या सच में भाजपा के पास अपराध धुलने वाली वाशिंग मशीन है?
बात ऐसी है की सब कुछ हमारे आंखों के सामने हो रहा है बस हमारे आंखों पर पट्टी बंधी हुई है और हमारे समाज में धर्म, धर्म से नीचे आए तो जाति में बांट दी गई है ताकि अगर जनता एक होना भी चाहे तो इनमें इतना मतभेद खुद में हो कि नेता इसमें भी अपनी राजनीतिक रोटी सेंक सके। हम आज अपने देश के लोकतंत्र की हत्या में भी उतने ही शामिल हैं जितना की राजनीतिक पार्टियां और उतने ही हमारे देश के नौकरशाह जो देश में भ्रष्टाचार और बुराइयों को खत्म करने के लिए तैयारी करते हैं, 16-17 घंटे पढ़ते हैं, मुखर्जी नगर और राजेंद्र नगर के लाइब्रेरी में रातें बिता देते हैं लेकिन नौकरी में आने के बाद ज्यादा पैसे कमाने और नौकरी बचाने के चक्कर में अपनी ईमानदारी को झोली में डाल कर नेताओं का दिया हुआ भेंट स्वीकार कर लेते हैं और भूल जाते हैं कि असल में ये इस नौकरी के लिए खुद से इतनी क्रांति क्यों किए थे। हम आज मरते हुए लोकतंत्र के गोद में सर रख कर सोए हैं और आंखे खोलने से डर रहे हैं की कहीं हम भी खुद को इस हत्या के दोष में शामिल न कर लें।