#DalitHistoryMonth
दलित हिस्ट्री मंथ की शुरुआत हो चुकी हैं, इसमें आज हम जानेंगे बाबासाहेब द्वारा चलाया गया पहला अख़बार जिसका नाम था – मूकनायकl मूकनायक की स्थापना, दिनांक 31 जनवरी 1920 को हुई थी, इस अख़बार की मूल भाषा मराठी थी एवम इसके पहले संपादक पांडुरंग नंदराम भाटकर थे, जो कि महाराष्ट्र के महार जाति के थे, इस अख़बार के प्रबंधक ज्ञानदेव ध्रुवनाथ घोलप थे, चूंकि आंबडेकर उस समय सिडेनहैम कॉलेज में प्रोफेसर के तौर पर कार्यरत थे इसलिए वह इसके संपादक नही बन सकते थे।
जानिए, क्यों जरूरी था मूकनायक?
मूकनायक, यानी कि द लीडर ऑफ वॉयसलेस, से प्रतीत होता हैं की यह अख़बार दबे–कुचलो की आवाज़ है। ब्रिटिश शासन काल में पत्रकारिता देश के उच्च जातियों द्वारा ही नियंत्रित होती थी, जिसमे राष्ट्रवाद के मुद्दे अहम थे, लेकिन उन राष्ट्रवाद के मुद्दों मे देश के दलित –आदिवासियों की कोई जगह नहीं थी, कोई भी अख़बार यह नहीं छापता था कि कैसे दलित दो तरीके से प्रताड़ित किए जा रहे हैं, पहला देश की उच्च जातियों द्वारा दूसरा ब्रिटिशों द्वारा, इन ब्रिटिश–उच्च जातियों के नेक्सक्स के बीच पिछड़ी जातियां हमेशा दब के रह जाती थी, उनके उत्थान, उनके अधिकारों की बात करने वाला कोई नहीं था, इन सारे परेशानियों के बीच बाबासाहेब ने एक विकल्प दिया देश के पिछड़ों को कि हमे अपने समाचार प्रकाशित करने के लिए देश के उच्च जाति पर निर्भर रहने की जरूरत नहीं है, हमे स्वयं अपनी आवाज़ बननी होगी।
हालांकि मूकनायक, लम्बे समय तक नहीं चल पाया, कुछ आर्थिक, एवम सामाजिक कारणों से लेकिन यह अख़बार देश के पिछड़ों को एक रास्ता दिखाया कि हमारे लिए पत्रकारिता कितना ज़रूरी है, यदि किसी भी आंदोलन को सफल बनाना है तो लोगो के बीच जागरूकता होनी चाहिए और पत्रकारिता उसमें एक अहम भूमिका निभाती हैं। मूकनायक ने एक वैचारिक लड़ाई लड़ी की राष्ट्रवाद के साथ –साथ देश के पिछड़ों के सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक स्थिति का भी आकलन ज़रूरी है, और राजनैतिक आज़ादी के साथ –साथ सामाजिक आर्थिक आज़ादी भी ज़रूरी हैं।