#DalitHistoryMonth
दिनांक 2 मार्च, 1930 का दिन दलित इतिहास के नज़र से बहुत ही महत्वपूर्ण है। इस दिन बाबासाहेब ने अपने 15,000 साथियों के साथ नासिक के कालाराम मंदिर की तरफ मार्च की शुरुआत की थी। हालांकि यह काम आसान नही था, इसके पहले भी अनेक समाज सुधारकों ने मंदिर में प्रवेश के लिए संघर्ष किया था, लेकिन वह इसको बड़ा रूप नही दे पाए थे।
जब बाबासाहेब ने कालाराम मंदिर की तरफ़ मार्च शुरू किया था तब इलाके में बहुत ही तनाव की स्थिति थी, पुलिस द्वारा पूरे इलाके में धारा 144 लगा दिया गया था, वहां के उच्च जातियों ने इसका जमकर विरोध किया लेकिन आंबेडकर और उनके साथी उस स्थान पर अडिग रहे और यह सिलसिला 1933 तक चलता रहा है। इस मामले जब कोर्ट का ऑर्डर आया कि अछूत इस मंदिर में प्रवेश नही कर सकते है, तब बाबासाहेब ने अपने साथियों एवम अनुयायियों को यह संदेश दिया कि वह अपने बड़ी उपलब्धियों की तरफ ध्यान दे।
बाद में बाबासाहेब ने यह कहा भी कि वह कभी भी अछूतों को मंदिरों में प्रवेश के लिए संघर्ष करते हुए नही देखना चाहते है, उनके अनुसार वंचितों को पूरी तरह से हिंदू धर्म का तिरस्कार करना चाहिए। उन्होने इस सत्याग्रह को इसलिए चलाया ताकि किसी भी सार्वजनिक जगह पर केवल उच्च जातियों का एकाधिकार ना रहे और मैं अछूतों को इस बात से भी अवगत कराना चाहता था कि उन्हें इस समाज में अपनी जगह का अंदाजा हो, और मंदिरों में प्रवेश के बजाय वह अपने राजनैतिक, शैक्षिक, सामाजिक विकास पर ध्यान दे।