जानिए क्यों अदभुत है डॉ. अम्बेडकर राष्ट्रीय स्मारक?

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अप्रैल का महीना यानि की दलित हिस्ट्री मंथ, क्योंकि इस महीने में समाज सुधारक ज्योतिराव फुले एवम संविधान निर्माता बी.आर अंबेडकर जैसे महान हस्तियों का जन्म हुआ था। इस महीने में हम आज ऐसे स्मारक की चर्चा करेंगे जिसकी संरचना अपने आधुनिक तकनीकों से लैस बाबासाहेब आंबेडकर के उद्देश्यों को दर्शाती है।

Pic credit: Wikipedia

यह स्मारक दिल्ली के 26 अलीपुर रोड, सिविल लाइंस के निकट स्थित है। इस जगह पर बाबासाहेब ने अपनी आखिरी सांस ली थी, इसलिए इस जगह का नाम महापरिनिर्वाण भूमि है। इस स्थान की नींव 21 मार्च, 2016 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा रखी गई थी और उसी समय प्रधानमंत्री ने यह वादा भी किया था कि ठीक दो साल बाद 14 अप्रैल 2018 को वह इसका उद्घाटन करने भी आएंगे, और वैसा ही हुआ, 13 अप्रैल 2018 को इस स्मारक का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा किया गया।

Pic credit: Zikra Delhi

इस स्मारक को बनाने का श्रेय केंद्रीय लोक निर्माण विभाग को जाता है जिन्होंने इसे एक क़िताब यानि संविधान के किताब का आकार दिया है। इस स्मारक में प्रवेश निःशुल्क है, जिसमे आप सुबह के दस बजे से शाम को 7 बजे तक जा सकते है, और यह दिन सोमवार को बंद रहता है। जैसे ही आप परिसर में प्रवेश करते है, यह आपको बुद्ध वास्तुकला का परिचय देगा, आपको अशोक का स्तंभ दिखेगा, वही आपको सांची स्तूप के खंभे भी दिखेंगे जिसके बीच एक संगीतमय फव्वारा भी है, वही आप जलपान गृह की ओर जाते है तो आपको बौद्ध धर्म की 12 मुद्राएं दिखेंगी, जिसकी नक्काशी अपने आप में अदभुत है।

जैसे ही आप मेन गेट से स्मारक के बिल्डिंग में प्रवेश करेंगे वैसे ही आपको भीमराव अंबेडकर की दो मूर्तियां मिलेंगी, जिसमें एक में बाबाबसाहेब अपने आइकॉनिक पोज में दिखाई देंगे, वही दूसरी ओर नीले कोर्ट में बाबासाहेब एक पेड़ के नीचे सोचते हुए दिखाई पड़ रहे हैं की वह इतना पढ़ने–लिखने के बाद भी इतना संघर्ष कर रहे हैं, इसलिए यह जरूरी है कि उनके समाज के लोग पढ़े और जाति के भेद को तोड़ अपना सामाजिक –आर्थिक स्थिति सुधारे। जब हम रिसेप्शन से दाई ओर जाते हैं तो बाबासाहेब का बाल्य –काल का चित्रण किया गया है, जहां एनिमेटेड वीडियो, ओर फोटोग्राफ के माध्यम से बताया गया है कि बाबासाहेब के अछूत होने के कारण उन्हें कक्षा के बाहर बैठाया जाता था, लेकिन वह फिर भी सारे कक्षाओं में ध्यान लगा कर पढ़ते थे, और कक्षा में सभी प्रश्नों के उत्तर को देते थे। एक चित्र के माध्यम से यह भी दर्शाया गया है कि बाबासाहेब को जब जहां समय मिलता था वही पढ़ने बैठ जाते थे। फिर यह भी बताया गया है कि जब वह 17 साल के थे और रमाबाई 9 साल की थी तो इन दोनों का विवाह कर दिया गया था। उसके बाद उनकी मैट्रिक की यात्रा को बताया गया है कि सन 1907 में उन्होंने बॉम्बे यूनिवर्सिटी से पास की, फिर 1913 में उन्होने अपनी स्नातक की पढ़ाई राजनीति विज्ञान और अर्थशास्त्र में बॉम्बे यूनिवर्सिटी से की। उसके बाद उन्होंने अपने आगे की पढ़ाई के लिए विदेश जाने का निर्णय लिया, आर्थिक स्थिति कमज़ोर होने के कारण बड़ौदा के महाराज से पैसा ले कर वह अमेरिका के कोलंबिया यूनिवर्सिटी पढ़ने गए जहां वह 1913–17 तक रहे उसके बाद विश्वयुद्ध के दौरान उन्हें भारत आना पड़ा, फिर वह 1920–1923 तक विदेश में रहे। तब तक भीमराव अंबेडकर ने अपने–आप को एक अकादमिक, शिक्षाविद के रूप में स्थापित कर लिया था।

 

जब वह विदेश से भारत आए तब वह बड़ौदा में पीसीएस अधिकारी के रूप में कार्यरत थे क्लास A ऑफिसर होने के बावजूद भी उनके महार जाति होने के कारण कही उन्हें कमरा नही मिला, फिर उन्होने एक पारसी हॉस्टल में ऊपर मंजिले पर एक कमरा मिला जहां अधिकांश लोगो को यही पता था कि वो पारसी है, जैसे ही लोगो को पता चला कि वह तथाकथित रूप से अछूत है, उन्हें उस हॉस्टल से निकाल दिया गया। इस स्मारक में वीडियो के माध्यम से यह भी दिखाया गया है कि उनके ऑफिसर होने के बावजूद भी जब वह कर्मचारी से पानी पीने को मांगते है तो कर्मचारी ग्लास पटक देता है और जब फाइल मांगते है तो फाइल पटक देता है।

वही रिसेप्शन के बाई ओर बढ़ते हैं तो बाबासाहेब के अर्थनीति पर प्रकाश डाला गया है, इसमें एक विजुअल के माध्यम से यह बताया गया है कि बाबासेहब सामाजिक मुद्दों के साथ –साथ आर्थिक मुद्दों के भी विशेषज्ञ थे, उन्हीं के रिकमेंडेशन पर रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया का प्रस्ताव हेमंड कमीशन को भेजा गया था हो उनके पीएचडी थीसिस “the problem of rupee” पर आधारित थी। उसके बाद एक दीवार पर यह भी दर्शाया गया है कि जब भारत के नेता साइमन कमीशन के खिलाफ थे तब बाबासाहेब ने साइमन कमीशन का विरोध न कर उन्हें अछूतों के राजनीतिक भागीदारी के लिए पत्र लिखा था।

उसके बाद एक दीवार पर महाड़ सत्याग्रह के बारे में बताया गया है जिसमें वह अपने साथियों के साथ मिलकर चवदार टैंक से पानी पीते है और वंचितों को सार्वजनिक स्थानों पर स्वच्छंद रहने का उनका अधिकार दिलाते है।

फिर उसके बगल में ही एक दीवार पर हम यह पाते हैं कि उन्होंने कैसे कालाराम मंदिर सत्याग्रह की शुरुआत की थी जहां पर सालों से केवल उच्च जाति के लोग ही प्रवेश कर सकते थे जहां पर आंबेडकर ने अपने साथियों के साथ मंदिर में प्रवेश करने की कोशिश की, आंबेडकर कभी भी नही चाहते थे कि भारत के वंचित मंदिरों के लिए लड़ाई करे, उन्होंने यह आंदोलन इसलिए किया था कि अछूतों को इस समाज में अपनी जगह पता चले और वह मंदिर जाने के बजाय अपने शिक्षा, राजनीति पर ध्यान दे।

उसके बाद हम उनके पारिवारिक परिदृश्य को देखते हैं, जहां उनके परिवार के साथ फोटो है, वही एक फोटो और भी जहां वह तपस्वी के रूप में दिखाई देते है, यह उस समय की फोटो है जब रमाबाई अंबेडकर का कुपोषण और लंबी बीमारी के कारण निधन हो गया था तब अंबेडकर ने अपने आप को एकांत कर लिया था जब वह काफ़ी दिनों बाद अपने घर से निकले तब वह तपस्वी के रूप में दिखाई दिए तब उनके इस रूप को देख उन्हें बाबासाहेब लोगो ने कहना शुरू कर दिया।

उसके बाद हम एक दीवार पर देखते हैं कि बाबासाहेब द्वारा चलाए गए अखबारों को चित्रों के माध्यम से दर्शाया गया है, जिसमें जनता, प्रभुद्द भारत, मूकनायक, बहिष्कृत भारत जैसे पैरियोडिकल्स शामिल है।

 

जब हम ऊपर की ओर बढ़ते है तो पूरा फ्लोर संविधानमय नजर आता है, जिसमें हम चित्रों के माध्यम से संविधान के बनने की प्रक्रिया को देखते है, यहां कुछ स्टेच्यू बनाए गए हैं जिसमे बीआर अंबेडकर के साथ जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभ भाई पटेल, जगजीवन राम, बलदेव सिंह नजर आ रहे हैं जहां संविधान की कॉपी पर हस्ताक्षर किया जा रहा है। वही एक ओर हम बाबासाहेब को एक रोबोट के रूप में देखते है जिसमे बाबासाहेब संविधान के एक भाषण को बोल रहे हैं।

वही यहां एक कमरा दिखाई देता है जिसमें आंबेडकर के एक कमरे का रेप्लिका तैयार किया गया है, जहां उनका पुतला एक कुर्सी पर बैठे हुए हैं वही उनका कुत्ता टॉबी भी है और किताबे भी है।

वही हम दूसरी ओर जाते हैं तो आंबेडकर के बौद्ध जीवन पर प्रकाश डाला गया है जहां एक कट आउट में वह अपनी पत्नी सविता अंबेडकर के साथ बौद्ध धर्म को ग्रहण करते हैं वही दूसरी ओर भित्ति चित्रों के माध्यम से पंच तीर्थ का भी वर्णन किया गया है, वही आगे जा कर बुद्ध की बहुत आकर्षक प्रतिमा भी बनाई गई है जहां आप मेडिटेशन भी कर सकते है।

वही साइड में आंबेडकर के मंत्रालय से इस्तीफा देने की भी तस्वीर दिखाई गई है, और अंत में उनके देहावासन की जहां वह दिल्ली के अलीपुर रोड में 6 दिसंबर 1956 को बीमारी के कारण आखिरी सांसे लेते है।

यह स्मारक एक आकर्षण का केंद्र बन चुका हैं, जहां आंबेडकर के जन्म से लेकर उनके विभिन्न आंदोलनों की चर्चा विस्तार से की गई है, जिन्होंने अंबेडकर के बारे में बड़ी–बड़ी किताबे नही भी पढ़ी है वह यहां आकर उनके जीवन की अनेक उपलब्धियों से रूबरू हो सकता है। यह स्मारक आधुनिक एवम बौद्ध वास्तुकला का मिश्रण है, और ऐसे स्मारक देश के हर कोने में होना चाहिए जिससे आंबेडकर की ख्याति देश के दूर–दराज जगहों पर पहुंचे और जो आज भी वंचित है उनके लिए प्रेरणा का श्रोत बने।