Film review: अश्लीलता और सभ्यता की बेड़ियों को तोड़ते थे दलित गायक चमकीला

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Pic credit: Indian Express

बहुत अरसे बाद हिंदी सिनेमा में ऐसी फ़िल्म बनी है, जिसने फिर से हिंदी फिल्मों को जीवंत कर दिया है। यह कहानी है पंजाब के दलित गायक धनी राम उर्फ अमर सिंह चमकीला की जो मात्र 27 साल की उम्र में इस दुनिया को छोड़ कर चले गए, फिर भी उन्होंने देश के गायकों को एक हिम्मत दी की कला को किसी भी सभ्यता के बेड़ियों से नही बांधना चाहिए।

अमर सिंह चमकीला फ़िल्म के निर्माता इम्तियाज़ अली,है वही इसके मुख्य भूमिका में दिलजीत दोसांझ जिन्होंने चमकीला का रोल निभाया है और परिणीति चोपड़ा जिन्होंने अमरजोत कौर यानी कि चमकीला की दूसरी पत्नी का किरदार निभाया है।

यदि अभिनय की बात की जाए तो दिलजीत दोसांझ ने अपने अभिनय से चमकीला किरदार को एक बार फिर से जीवित कर दिया है, अमरजोत कौर का रोल परिणीति चोपड़ा ने भी बखूबी निभाया है, निर्देशन के हिसाब से देखा जाए तो चमकीला के जीवन के हर पहलुओं को नहीं छुआ गया है, इसमें उनके हत्या के संभावित कारणों को स्पष्ट रूप से नही दिखाया गया है। फिल्मांकन की दृष्टि से यह फ़िल्म यथार्थ के करीब है क्योंकि शूटिंग पंजाब के उन्हीं जगहों पर की गई है जहां से चमकीला का वास्ता था।

परिचय

चमकीला का वास्तविक नाम धनी राम था, वह पंजाब के एक दलित समुदाय से आते थे, गरीबी –अशिक्षा होने के कारण चमकीला एक कपड़े की फैक्ट्री में मोजे बनाया करते थे, लेकिन उनका मन मोजे बनाने के बजाय संगीत में ज्यादा लगा रहता था, वह खेत की पगडंडियों के बीच, कुएं के किनारे बैठ संगीत का रियाज किया करते थे।

धनी राम से चमकीला बनने का सफ़र

धनी राम ने अपने एक दोस्त को कहा कि उन्हें संगीत पसंद है, तभी उनका दोस्त पंजाब के एक मशहूर गायक के पास ले कर जाता है, जहां वह गायक इनकी लेखनी से प्रभावित हो जाता है और इन्हीं के लिखे गानों को मंच पर गाता है, लेकिन धनी राम केवल मशहूर गायक का एक कर्मचारी बन कर रह जाता है, उसके लिखे गीतों को कभी कोई श्रेय नहीं देता है, एक दिन मशहूर गायक के मंच की अनुपस्थिति में धनी राम को मंच संभालने के लिए दिया जाता है, तभी मंच पर उन्हें नाम दिया जाता है, अमर सिंह चमकीला और जब चमकीला सुर लगाता है तब जनता उनके बोल और सुरों की दीवानी हो जाती है, तबसे पंजाब की संगीत की दुनिया में चमकीला ही चलता है, और ऐसे धनी राम चमकीला बनता है।

एक दलित गायक का संघर्ष

चमकीला के मशहूर होने के बाद भी उसकी जाति उसका पीछा नही छोड़ती, उसके कमाए हुए पैसे अखाड़े वाले अपने पास रख लेते थे, उसके अखाड़े की दिहाड़ी भी नही देते थे, जब वह मांगने जाता है तो वही अखाड़े के लोग उसकी जाति पर टिप्पड़ी करते है तभी चमकीला बोलता है कि चमार हू लेकिन खुद के दम पर चीजे खड़ी कर सकता हूं और वहां से फुटपाथ से अपना संघर्ष शुरू कर पंजाब का सबसे मशहूर गायक बनता है।

इस फ़िल्म में यह भी दिखाया गया है कि एक दलित गायक जब लोगो के बीच मशहूर होता है तो लोग उस पर अश्लील होने का आरोप लगाते हैं उसके हजार दुश्मन खड़े हो जाते हैं, मीडिया भी उसे बेशर्म, आवरा करार देती है,अपने दोस्तों को ही उसकी तरक्की पसंद नही आती, लोग उसके जान के भी उतारू हो जाते है, और उसके मरने का इंसाफ आज तक नहीं दिया जाता है।

हालांकि फ़िल्म यदि उनके साथ हुए जातिगत भेदभाव पर और प्रकाश डालता तो उनके व्यक्तित्व समझने में और आसानी होती।

चमकीला ने पंजाब में मौजूदा ड्रग्स, हथियार संस्कृति पर भी गाने बनाए है, जिससे उसे अक्सर धमकियां मिलती रहती थी कि इससे पंजाब का नाम ख़राब हो रहा है और पूरे विश्व में पंजाब के नाम पर गलत संदेश जा रहा है।

फूहड़ता और सभ्यता की दीवारों को तोड़ता चमकीला

समाज के तथाकथित सुधारकों ने चमकीला के गानों को फूहड़ बताया है, और जब चमकीला ने अपने गानों की शुरआत की तो उसे अनेक नैतिकता, सभ्यता के भाषण मिलते थे, यहां तक की उसके चरित्र पर भी सवाल उठाए जाते थे, उसके पत्नी के घरवालों ने इसका खुल के विरोध किया की भला अपनी पत्नी से ऐसे फूहड़ गाने गवाता है क्या, लेकिन लाखों समाज के नैतिकताओं को किनारे कर चमकीला ने अपनी लेखनी –गायकी में कोई बदलाव नहीं किए और वो और उसकी पत्नी गाते चले गए।

1984 के दौर में चमकीला मनोरंजन का प्रतीक

इस फ़िल्म में यह भी बताया गया है कि जब 1984 के दौर में पंजाब एक रोष, गुस्से, उत्पीड़न के दौर से गुज़र रहा था तब चमकीले के गानों ने लोगो को खुश करने का काम किया और उसके गाने के सहारे लोग अपनी समस्याओं को भूल अपना मनोरंजन करते थे।

जनता की मांगों का गुलाम था चमकीला

Pic credit: Pink Villa

1984 के दौर के बाद चमकीला को धर्म के ठेकेदारों से आए दिन धमकियां मिलती रहती थी, कभी कोई आ कर उस पर दवाब बनाता था की अश्लील गाने गाएगा तो गोली से मार दिए जाओगे, कभी उससे पैसे की वसूली कर के जाता था, उसके बाद दवाब में आ कर चमकीला ने भक्ति गानों को बनाना शुरू कर दिया जो कि काफ़ी हिट हुए लेकिन जब भी वह किसी अखाड़ों में जाता लोग उससे उसके पुराने गानों की ही मांग करते और चमकीला मना नहीं कर पाता और जो जनता को चाहिए वह वही गाता रहा।

इस पूरे फ़िल्म का सार यही है कि गानों की फूहड़ता और नैतिकता का निर्धारण समाज के तथाकथित सुधारक नहीं कर सकते, सेक्स, एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर पर गाने बनाना समाज की सच्चाई है, यह किसी भी तरीके से फूहड़ता का प्रतीक नही है, और जब धार्मिक लोग उस पर सभ्यता का दबाब बनाते हैं तब चमकीला यहीं कहता है कि “उसके गाने अश्लील कैसे हो सकते हैं, जब वह पंजाब का हाइएस्ट रिकॉर्ड सेलर है, मैं वही गाता हू जो लोग सुनना पसंद करते है,” सभी घरों की पार्टियों में उसी के गाने बजते हैं और वह जो गा रहा है वह कोई नया नही है हमारे घरों के आयोजनों में अक्सर महिलाएं ऐसा गीत गाती है जिसमें वह एक दूसरे पर सेक्सुअल जोक्स मारती है अपने सेक्सुअल फैंटेसी को उजागर करती है।

यह फ़िल्म सेक्स टैबू को तोड़ती है, और वर्तमान में कुछ लोग भोजपुरी फिल्म और गानों पर अश्लीलता का आरोप लगाते हैं उनके लिए यह फ़िल्म उचित उदाहरण पेश करता है कि यदि यह चीजे इतनी ही अश्लील है तो लोग यूट्यूब या अन्य सोशल मीडिया पर करोड़ों की संख्या में लोग क्यों देख रहे है।

– ऋतु