क्या ध्रुव राठी वाकई देश के लोकतंत्र को बचाना चाहते है?

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इस लोकसभा चुनाव में एक यूटूबर, ध्रुव राठी काफ़ी चर्चाएं बटोर रहा है। ऑनलाइन जनता को लग रहा है कि एक विपक्ष के रूप में ध्रुव राठी मोदी सरकार को करारा जवाब दे रहा है। विपक्षी दल खासकर कांग्रेस को यह लग रहा है कि वह उनकी आवाज़ बन कर खड़ा है और जब भी मोदी सरकार की निंदा करनी है तो कांग्रेस के नेता ध्रुव राठी के वीडियो को ट्वीट कर जवाब दे रहे है। विडंबना इस बात की है कि ध्रुव राठी को एक यूटुबर ना समझ उन्हें एक पत्रकार समझने लगे है और कांग्रेस को मोदी सरकार का जबाव देने के लिए एक यूटुबर का सहारा लेना पड़ रहा है, जो कांग्रेस वर्षों से इस देश पर शासन की है जिसके पास बुद्धिजीवी वर्ग की कमी नहीं है वो आज अपने सारे तर्को को भुला कर ध्रुव राठी को एक लोकतंत्र की आवाज़ मान रही है।

ध्रुव राठी की झूठी लोकतंत्र की लड़ाई

ध्रुव राठी अक्सर अपने वीडियो, ट्वीट में यह कहते हुए दिखाई दे रहे है कि वह अपने कंटेंट के माध्यम से लोकतंत्र को बचा रहे है। लेकिन उनके लोकतंत्र का दायरा बहुत ही सीमित है, जिसमें बस वह हिंदू –मुस्लिम के मुद्दों को उठाते है और यह बताते हैं कि मुसलमान खतरे में है, लेकिन ध्रुव राठी वहां चूक जाते है जहां पसमांदा मुसलमानों की बात आती है। ध्रुव राठी मुसलमानों के बीच बढ़ती खाई को नही पहचान पाते है। उनके लोकतंत्र में केवल देश के सवर्ण आते है जिसमें वह होली –दीवाली की शुभकामनाएं देते है वही वह अंबेडकर जयंती की शुभकामनाएं देना भूल जाते है। उनके लिए बहुजन सब्सक्राइबर्स की भीड़ है जो उनके वीडियो को देखकर उनका रेवेन्यू बढ़वाते है।

उनका लोकतंत्र उनके यूटयूब स्टूडियो तक सीमित है जहां से बैठकर वह देश के सांप्रदायिकता पर सवाल उठाते है, जहां से वह संदेशखली में महिलाओं के बयान पर टिप्पड़ी करते है, वास्तविकता के तौर पर उनका ज्ञान धर्म, जाति, राजनीति के मुद्दे पर उनका ज्ञान शून्य है, वह अपने रिसर्च टीम के सहारे 10 कट –पैच के साथ देश के लोकतंत्र को बचाते है।

हद तो तब हो जाती है जब वह अपने आप को नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के समकक्ष रखते है, और कहते है कि नेताजी सुभाष चन्द्र बोस भी जर्मनी से देश की लड़ाई लड़ रहे थे और मैं भी जर्मनी से भारत के लोकतंत्र की लड़ाई लड़ रहा हूं, उनका यह तुलनात्मक विचार उनके ज्ञान की पराकाष्ठा को दर्शाता हैं कि देश के इतिहास के बारे में उन्हें कितनी जानकारी है।

जातिवादी ध्रुव राठी

आज ध्रुव राठी की तुलना देश के बड़े –बड़े पत्रकारों से की जा रही है, की वह एक बहुत ही लोकतांत्रिक, प्रगतिशील पत्रकार एवम विचारक है, लेकिन यहीं प्रगतिशील व्यक्ति दलितों पर हुए अत्याचार पर एक भी वीडियो नही बनाता है, रोहित वेमुला केस में चुप्पी साध लेता है, दलित –आदिवासी पत्रकारों पर हमलों पर एक ट्वीट नही करता है, बहुजन महिलाओं के दामन पर उंगली उठाने वालो के खिलाफ़ चुप रहता है, अरविंद केजरीवाल के लिए सहानुभूति तो रखता है लेकिन हेमंत सोरेन पर मौन रहता है।

आज बहुत से बहुजन उनके फॉलोअर्स है, वह कभी भी बहुजनों का आदर्श नही बन सकते क्योंकि उनको ख्याति बहुजनों के मुद्दे उठाने पर नहीं मिलेगी, उनको ख्याति राम को पौरुष के प्रतीक बताने पर मिलेगी, उन्हें ख्याति शहरी इलाकों के इंग्लिश माध्यम पढ़े हुए युवकों के बीच मिलेगी जिन्हें ये तो पता है कि मोदी सरकार की आलोचना तो करनी है, लेकिन क्यों करनी है यह नही पता।

ध्रुव राठी एवम चुनावों पर असर

आज बहुत से लोगों को यह लग रहा है कि ध्रुव राठी के विडियोज मोदी सरकार के सीटों को कम कर देंगे एवं विपक्ष के सीटों को बढ़ा देंगे, तो उन्हें यह पता होना चाहिए की जो वोट देने वाली जनता है उन्हें नही पता है कि ध्रुव राठी कौन है? खेतो –खलिहानों, सड़कों पर मजदूरी करने वाली जनता के पास ध्रुव राठी के वीडियो देखने के लिए नाही मोबाइल है नाही समय।

वह इस मकसद से वीडियो भी नही बनाते कि वोटों पर असर पड़े, वह एक कंटेंट क्रिएटर है जिन्हें यह पता लग गया है कि एक विशेष किस्म का कंटेंट चल रहा है तो उनके वीडियो अब उसी मुद्दे पर आ रहे है।

ध्रुव राठी को इस बात का इल्म है की वह एक संभ्रांत जाति से आते है, और पक्ष एवं विपक्ष दोनों का प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष साथ उन्हें मिल रहा है, इसलिए वह ख़ुलेआम सरकार के खिलाफ बोल सकते है, और उनके जान-माल को कोई भी खतरा नही पहुचेगा.

-ऋतु (नेशनल कोऑर्डिनेटर, AIOBCSA)