स्मृति—विधान और संविधान

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Pic Credit: CLPR

सदर में जो खूबसूरती है
वो उस मैनहोल से होकर नहीं गुजरती
जहां सदियों से तुम्हारी स्मृतियों की गंदगी
सड़ांध मार रही है ।

तुम्हारे बाप की करामात थी —मनुस्मृति
जिसमें तुम सदर के खूबसूरत छोर पर
और हम मैनहोल के होल को लेकर,
वर्षों का संताप झेलते रह गए ।

अब तुम्हें डकार आने लगी है ।
हाजमा खराब हो गया है तुम्हारा ।
जबसे मैनहोल-चमरे-शमशान वाले
नीले झंडे लिए जय भीम हुंकारने लगे हैं।

सदर के रसूखदार और बरखुरदार लोग,
तुम्हारे मध्य पैमाना तय कर रहे हैं ।
इतिहास में जैसा इनके बाप ने तय किया था,
अवर्ण- मलेच्छ – अछूत – अंत्यंज ।

मनु, याज्ञवलक्य और पराशर की तरह,
तुम्हारा जातिगत मूल्य निर्धारित किया गया है ।
सेवा और मेवा का सब्जबाग दिखाकर,
तुम्हें खांचों में बांटा जा रहा है ।

अब सवाल तुम्हारे सामने यह है कि,
समाज स्मृतियों के विधानों में बंट कर,
सिमट जाएगा या एकजुट होकर पूछेगा कि,
—”सौ में नब्बे शोषित हैं, शोषितों ने ललकारा है, धन-धरती और राजपाट में, नब्बे भाग हमारा है…”

विकास कुमार, शोधार्थी, जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय.