पूना पैक्ट क्या था ? (24/09/1932)

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कम्युनल अवार्ड द्वारा दलितो को दो वोटों का अधिकार:
17 अगस्त को डॉ अम्बेडकर इग्लैन्ड से भारत लौटे और 20 अगस्त 1932 को ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने अल्पसंख्यकों को साम्प्रदायिक समस्याओं पर अपना फैसला दिया और उसकी घोषणा हुई। भारतीय संविधान के इतिहास में यह निर्णय कम्युनल अवार्ड के नाम से जाना जाता है। इस अवार्ड के तहत दलित वर्ग के लिए दो वोट देने का अधिकार मिला। दो में से एक वोट का अधिकार अपने दलित वर्ग का प्रतिनिधि चुनने के लिए तथा दूसरा वोट का अधिकार सामान्य चुनाव क्षेत्र से सामान्य प्रतिनिधि चुनने के लिए मिला। अतः पृथक निर्वाचन के अनुसार दलितों को डबल वोट देने का अधिकार मिला। यानी चुनाव में अपने प्रतिनिधियो को खुद के वोट से चुनना तथा सामान्य प्रतिनिधियो के चुनाव भी वोट देना। यह अधिकार मिलना डॉ अम्बेडकर की भारी जीत थी।


गान्धी जी को जब कम्युनल अवार्ड का पता चला तो पूना जेल से ही ब्रिटिश प्रधानमंत्री को को सूचित किया कि अछूतों को दिये गये पृथक प्रतिनिधित्व के खिलाफ 20 सितम्बर 1932 से जेल में ही आमरण अनशन शुरू कर देंगे । गान्धी जी द्वारा ब्रिटिश प्रधानमंत्री को लिखे पत्र के जबाब में प्रधानमंत्री रैम्से मैकडोनाल्ड ने लिखा कि सरकार का फैसला विभिन्न जातियों के न्यायपूर्ण हको को ध्यान में रखकर किया गया है, वह अब बदला नहीं जा सकता। इसलिए गान्धी जी ने आमरण अनशन शुरू कर दिया और डॉ अम्बेडकर पर सारे नेताओं ने दबाव डाला कि पृथक निर्वाचन के फैसले को वापिस ले ले और गान्धी जी के प्राण बचाये। उन्हें जान से मारने की धमकी भी मिलने लगी।


इस पर डॉ अम्बेडकर ने कहा, इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर मैं खलनायक बनू, यह मेरा नसीब ही सही, लेकिन जिसे मैं अपना पवित्र कर्तव्य मानता हूँ, उससे मैं जरा भी टस से मस नहीं होऊगा। मैं अपने लोगों के प्रति विश्वासघात नहीं करूंगा, भले ही आप मुझे नजदीक के बिजली के खम्भे पर उल्टा लटकाकर फाँसी दे दे। सभी नेता सोच रहे थे कि गान्धी जी से मिलते ही अम्बेडकर पिघल जायेंगे, लेकिन डा अम्बेडकर अपने करोङो गरीब अछूत भाईयों को अपने प्राणों से ज्यादा चाहते थे। वह तो निस्वार्थ भाव से उनकीं मुक्ति के लिए डटे हुए थे। वह धैर्यवान, निडर,साहसी व बुद्धिमान थे। वह लालच या झांसे में आने वाले नहीं थे। यह दलितों व देश की आजादी का सवाल था, कङे इम्तिहान की घङी थी ।
अंत में गान्धी जी के प्राण बचाने हेतु भारी दबाव में डॉ अम्बेडकर को समझौता करना पङा तथा बदले में आरक्षण की व्यवस्था की गई ।24सितम्बर 1932 को यरवदा जेल, पूना में गान्धी व डॉ अम्बेडकर के बीच जो समझौता हुआ वह बाद में पूना पैक्ट के नाम से जाना जाता है. अछूतों की ओर से डॉ अम्बेडकर और हिन्दुओं की ओर से पं मदनमोहन मालवीय ने हस्ताक्षर किए और इस प्रकार गान्धी जी का अनशन खत्म हुआ और बाबा साहब ने उनके प्राण बचाये। गान्धी (बापू) के प्राण बचाने की वजह से ही लोगों ने उन्हें बाबा साहब की उपाधि दी। इसलिए वे बापू के भी बापू (बाबा साहब) कहलाये ।
पूना पैक्ट के बाद डॉ अम्बेडकर ने अद्भुत नेतृत्व क्षमता व दृढ़ता से काम लिया क्यों कि एक तरफ वे अकेले थे तो दूसरी तरफ सारे देश के नेता और उधर गान्धी जी जेल में मृत्यु सैया पर लेटे पङे थे। ऐसी नाजुक व विकट परिस्थिति में भी डॉ अम्बेडकर ने दबकर या झुककर समझौता नहीं किया जबकि उन पर भारी दबाव व जान से मारने की धमकी भी मिल रहीं थीं। इस समझौते के तहत दलितों को 148 सीटे मिल गई तथा नौकरियों एवं राजनीति में आरक्षण मिला ।


इसी आरक्षण की बदौलत आज बहुजन समाज तरक्की कर रहा है लेकिन आज सरकार आरक्षण को ही खत्म करने पर तुली हुई है क्योंकि हर विभाग में निजीकरण को बढावा दिया जा रहा है।

ऑल इंडिया नाग एसोसिएशन