पहले मंदिर, फिर मस्जिद, फिर दंगे, हिंसा और गरीबी। फिर से मंदिर और फिर मस्जिद…
पहले समान नागरिक संहिता, फिर वक्फ बोर्ड और फिर पंथनिरपेक्ष नागरिक संहिता।
पहले ’वोट जिहाद’, फिर ‘बटेंगे तो कटेंगे’….
क्रिया की प्रतिक्रिया
अप्रैल 2024 में, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय कानून मंत्री सलमान खुर्शीद की भतीजी मारिया आलम ने समाजवादी पार्टी के लिए प्रचार करते हुए फर्रुखाबाद में एक चुनावी रैली में कहा:
“क्योंकि इस संघी सरकार को भगाने के लिए हम सिर्फ वोट जिहाद ही कर सकते हैं। अब हाथ मिलाने का समय आ गया है, नहीं तो यह संघी सरकार हमारा अस्तित्व मिटाने में सफल हो जाएगी।”
अक्टूबर 2023 से गाजा में क्या हो रहा है ? फिर भी सऊदी अरब, ईरान और पाकिस्तान ने सार्वजनिक तौर पर जिहाद की घोषणा नही की है।
क्रिया की प्रतिक्रिया
2024 लोकसभा चुनाव के बाद केंद्र सरकार ने वक्फ संपत्तियों के मुद्दे को उठाया। इसके बाद, बांग्लादेश का मुद्दा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुंच गया। अगस्त 2024 में, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा:
“राष्ट्र से ऊपर कुछ भी नहीं हो सकता। और राष्ट्र तभी सशक्त होगा जब हम एकजुट होंगे। बटेंगे तो कटेंगे। आप देख रहे हैं कि बांग्लादेश में क्या हो रहा है। वे गलतियाँ यहाँ नहीं दोहराई जानी चाहिए… बटेंगे तो कटेंगे, एक रहेंगे तो नेक रहेंगे।”
क्रिया की प्रतिक्रिया
बंटेंगे तो कटेंगे नहीं, बंटेंगे तो…इस बात को दलितों को जरुर सोचना चाहिए,
यदि वह बंटेंगे तो मैला उठाएंगे, जैसा कि आज भी होता है। बंटेंगे तो सेवा करनी पड़ेगी, जैसा कि ऋग्वेद और मनुस्मृति में लिखा है।
उदाहरण:
1957 में, जम्मू-कश्मीर सरकार ने पंजाब से कई दलितों को वहां बसाया था। क्यों? सेवा करने और साफ-सफाई करने के लिए। जम्मू-कश्मीर सरकार के पास बहुत सारी शक्तियां और अपना संविधान था, फिर भी उन दलितों को आवासीय प्रमाण पत्र नहीं दिया गया ताकि वे अन्य काम न कर सकें।
2019 में, अनुच्छेद 370 और 35ए समाप्त होने के बाद, 2020 से उन दलितों को सभी अधिकार मिल रहे हैं। और 2024 में, 67 साल बाद उन्होंने विधानसभा चुनाव में वोट दिया।
अब सबकी नजरें महाराष्ट्र के चुनाव पर हैं कि क्या वहां के दलितों को राजनैतिक सहभागिता का मौका मिलेगा?
खुशहाली की ओर
यदि देश के तौर पर देखेंगे तो आपस में लड़ने से कोई फायदा नहीं होगा। आज यूनाइटेड स्टेट्स और यूरोपिय संघ की अर्थव्यवस्था संयुक्त रूप से 48 ट्रिलियन डॉलर की है, जबकि हमारी सिर्फ 4 ट्रिलियन है। क्या इजराइल हमारी बात सुनेगा या उनकी ? यूनाइटेड स्टेट्स और इजराइल का समाज बंटा हुआ है, जबकि गाजा, ईरान और सऊदी अरब का समाज एक है। फिर क्यों… यदि सभी राज्यों में तृणमूल कांग्रेस की सरकार होती और केंद्र में भी इसकी पूर्ण बहुमत की सरकार होती, तब भी इजराइल नहीं रुकता। अगर भारत ज्यादा विरोध करता, तो इजराइल प्रधानमंत्री ममता बनर्जी के लिए गिरफ्तारी वारंट जारी कर देता। अर्थात अपने देश में जाति, लिंग, धर्म एवं अन्य को दरकिनार कर एकता बनाए रखने की जरूरत है, ताकि विश्व की कोई भी शक्ति भारत को तोड़ न सके.

डिंपल कुमार, सामाजिक-राजनैतिक मुद्दों पर रूचि रखते है.