
हाल फिलहाल में सैम मानेकशॉ की मूवी रिलीज हुई है जिसे देखने के लिए लोगों की उत्सुकता बहुत है, आइए जानते हैं इनके बारे में :
व्यक्तिगत जिंदगी

पूर्व आर्मी चीफ़ सैम हरमौजी जमशेदजी मानेकशॉ का जन्म अमृतसर में हुआ था, इनके पिता पेशे से डॉक्टर थे जो की मूल रूप से वलसाड़, गुजरात के रहने वाले थे। इनकी शादी सिल्लू से साल 1939 में हुई थी जिनसे इन्हें 2 बेटियां थीं। इत्तेफ़ाक की बात तो ये है की उनके पिता के ज्यादातर दोस्त लाहौर में रहते थे तो सैम के पिता भी अपने पूरे परिवार के साथ लाहौर जा रहे थे पर रास्ते में ही अमृतसर रेलवे स्टेशन पर सैम की मां को लेबर पेन होने लगा और स्टेशन मास्टर और अन्य लोगों की मदद से स्टेशन पर ही सैम के बड़े भाई का जन्म हुआ, सोचिए अगर ऐसी परिस्थिति नहीं आई होती तो सैम कभी भारत के होते ही नहीं। ऐसी स्थिति में सैम के पिता ने अमृतसर में ही कुछ दिन रुकने का फैसला किया, और ऐसे करते करते महीने और फिर साल निकल गए और उन्हें अमृतसर भा गया। सैम अपने घर के पांचवे संतान थे
आर्मी में उनकी जिंदगी
सैम मानेकशॉ को लंदन जाकर पढ़ने का मन था, ये बात उन्होंने अपने पिता से बताया तो उनके पिता ने साफ तौर पर मना कर दिया। सैम ने साल 1931 में इंडियन मिलिट्री अकादमी की परीक्षा दी जिसमें उन्होंने छठा रैंक हासिल किया। सेना में अपने बहादुरी और रणनीति के लिए जाने जाने वाले सैम बहादुर को साल 1942 में दूसरे विश्व युद्ध के दौरान दोहरा प्रमोशन देकर सबसे युवा कैप्टन बनाया गया जहां बर्मा में जापान के सैनिकों द्वारा मशीन गन से बहुत सारी गोलियां खाने के बाद भी युद्ध के मैदान में 36 घंटे तक बेहोश पड़े रहे और 36 घंटो के बाद उनके एक साथी शेर सिंह ने उन्हें मेडिकल कैंप तक पहुंचाया। मेडिकल कैंप में ही उन्हें मिलिट्री क्रॉस फॉर गैलंट्री अवार्ड से समन्नित किया गया था जहां सबको लगा था की अब इनकी जान नहीं बचाई जा सकती।
आज़ादी के बाद
भारत के आजादी के बाद मानेक शॉ के पास पूरा मौका था पाकिस्तान आर्मी में जाने का पर उन्होंने भारत की आर्मी को ही चुना और गोरखा राइफल्स में पदस्थ हुए और साल 1973 में इन्हें भारत का पहला फील्ड मार्शल बनाया गया और उसी साल इन्हें रिटायरमेंट भी मिला । इन्हें साल 1972 में पद्म विभूषण से भी समन्नित किया जा चुका था और बीते कई सालों में सैम बहादुर को भारत रत्न देने की बात की गई।
गौरतलब है की इतनी बहादुरी और इतने त्याग के बावजूद इन्हें न वो सैलरी दी गई और न ही इनके देहांत पर वो सम्मान। इनके अंतिम यात्रा में ना ही प्रधान मंत्री ना राष्ट्रपति और ना ही किसी सेना के प्रमुख शामिल हुए।
साल 2007 में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ ए. पी. जे. अब्दुल कलाम वेलिंगटन में सैम बहादुर से मिलकर उन्हें 1.3 करोड़ का चेक देकर सम्मानित किया।
इनको अपने ड्यूटी के दौरान अनेकों अवार्ड मिले :

- पद्म विभूषण
- पद्म भूषण
- जनरल सर्विस मेडल 1947
- पूर्वी स्टार
- पश्चिमी स्टार
- रक्षा मेडल
- संग्राम मेडल
- सैन्य सेवा मेडल
- इंडियन इंडिपेंडेंस मेडल
- 25वां इंडियन एनिवर्सरी मेडल
- 20वां लॉन्ग सर्विस मेडल
- 9वां लॉन्ग सर्विस मेडल
- मिलिट्री क्रॉस
- 1939 – 45 स्टार
- बर्मा स्टार
- वार मेडल 1939-1945
- इंडिया सर्विस मेडल
- बर्मा गैलंट्री अवार्ड