
22 जनवरी का दिन उन सभी लोगो के लिए सुखदायक था, जिन्हें राम के राजनीतिकरण में दिलचस्पी थी, हम यह देख सकते थे कि गली-सड़को से लेकर, दुकान-स्कूलों तक लोग भगवा झंडा लहरा रहे थे।
लगभग हर घरों में जय श्री राम के गाने बज रहे थे, भंडारों का आयोजन हो रहा था, स्कूल-कॉलेज, दफ्तर सभी जगह छुट्टियां थी, और लोग एकजुट हो कर लाइव टेलिकास्ट देख रहे थे जहां रामलला के मूर्ति में प्राण डाला जा रहा था।। यह उत्सुकता देख कर खुशी हुई कि देश में एक राम की लहर उठी है, और सभी लोग एक ही भाव से स्वागत कर रहे है, लेकिन दुख की बात यह है कि ऐसी एकजुटता किसी भी महिला का रेप होता है तो उसके लिए नही दिखता, यदि किसी भी दलित की पिटाई होती है तो लोग एक साथ आक्रोशित नही होते। देश की आम जनता यह भूल चुकी है कि हम एक धार्मिक देश ना हो कर लोकतांत्रिक देश है, जहाँ सभी धर्मों का समान रूप से अनुपालन होता है। हम यह क्यों भूल गए है कि देश मे कितनी ग़रीबी और बेरोजगारी है, जहाँ लाखों लोग यदि प्रतिदिन ना कमाएं तो शाम को खाना ना खाए, लेकिन इन सारी समस्याओं को भूलकर लोग सड़कों पर उतर कर जय श्री राम के नारे लगा रहे है।
धर्म का राजनीतिकरण
आप सभी को याद दिला दे कि सन 1948 में सोमनाथ मंदिर के उद्घाटन के लिए तत्कालीन राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद को बुलाया गया था, तब प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु ने उन्हें पत्र लिखकर अपनी असहमति जताई थी कि एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के राष्ट्रपति को यह शोभा नही देता की किसी भी धार्मिक कार्यक्रम का हिस्सा बने, उन्होंने यह भी याद दिलाया था कि देश में ग़रीबी, अशिक्षा जैसे तमाम मुद्दें है जिस पर हमें ध्यान देना चाहिए, न कि धार्मिक आयोजनों पर। और आज वही देश है जो सात दशक बाद उन्हीं धर्म की जटिलताओं में फंसा हुआ है, जहाँ, धार्मिक आयोजनों के लिए छुट्टी दे दी जाती है, जहाँ सरकार के लोग खुद जा कर लोगो को राम मंदिर के लिए निमंत्रण दे रहे है, जहाँ देश के प्रधानमंत्री प्रतिमा के अनावरण के लिए सारे जरूरी काम को छोड़कर अयोध्या में उपस्थित है, जहाँ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री, राज्यपाल और आर एस एस के चीफ एक साथ मिल कर पूजा कर रहे है। यह कैसा पंथनिरपेक्ष भारत है, जहां सरकारी तंत्र अपने आप को हिन्दू घोषित करने में लगा हुआ है, जहां प्रशासन के लोग खुलेआम देश को हिन्दू राष्ट्र घोषित कर रहे है। मीडिया भी ऐसे अफवाह फैलाने से बिल्कुल भी नही चूक रही है कि भारत हिन्दू राष्ट्र बन चुका है।
भारत में धर्म एक निजी मामला है लेकिन यहाँ धर्म एक सार्वजनिक प्रदर्शनी बन चुका है, राम के नाम पर आम जनता को बेवकूफ बनाया जा रहा है, लोगो को यह सोचना चाहिए कि आखिर साल 2024 ही क्यों चुना गया प्राण प्रतिष्ठा के लिए? उद्घाटन से पहले धर्मगुरु शंकराचार्य की बातों को नजरअंदाज क्यों किया गया? आज प्रधानमंत्री धर्म अनुयायी नही, धर्म ध्वजी बन गए है, जो करोङो लोगो को जोर-शोर से बता रहे है कि मंदिर वही बना है। लोगों को इस बात का आकलन करना चाहिए कि यह सरकार उनके धार्मिक आस्थाओं का ख्याल नही कर रही है यह आगामी चुनावों की तैयारी कर रही है और हम उसका एक माध्यम बन रहे है।