
कर्पूरी ठाकुर के 100वें जन्मदिन से एक दिन पहले भारत सरकार ने कर्पूरी ठाकुर को देश के सबसे सर्वश्रेष्ठ सम्मान भारत रत्न से नवाजने का एलान किया है। इस स्थिति में देश के पिछड़ो के लिए खुशी का माहौल है, कुछ लोगो का मानना है कि यह पुरस्कार समय की जरूरत थी, कुछ लोग इसे सरकार का राजनीति कदम मान रहे है। इन तमाम विवादों के बीच हमारा यह जानना जरूरी है कि कर्पूरी ठाकुर जिन्हें जननायक भी कहा जाता है, जो हमारे बीच नही है क्यों जरूरी है।
जीवन परिचय
जननायक का जन्म बिहार के समस्तीपुर जिले में एक नाई परिवार में हुआ था, तब एक नाई परिवार के बच्चे के लिए यह सोचना नामुमकिन के बराबर था कि वह कभी राज्य का मुख्यमंत्री बनेगा, लेकिन इस नामुमकिन बात को कर्पूरी ठाकुर ने सच कर दिखाया और देश के करोड़ो को उम्मीद दी कि देश का दबा-कुचला भी शासन कर सकता है।
कर्पूरी ठाकुर को पिछड़ो के आरक्षण का अग्रदूत भी कहा जा सकता है, जिन्होंने मण्डल कमीशन के आने के पहले, बिहार राज्य में पिछड़ो को रोज़गार में आरक्षण दिया, साठ के दशक में कर्पूरी ठाकुर ने अंग्रेजी की अनिवार्यता स्कूलों में समाप्त कर दी, जिसके वज़ह से उन्हें काफी आलोचना भी सुनना पड़ा, लेकिन उनका मानना था कि पिछड़े वर्ग के लोग अंग्रेजी से इतने वाकिफ़ नही है जिस वजह से वह मैट्रिक की परीक्षा में फेल हो जा रहे है, जिससे उनका पढ़ाई के प्रति मनोबल गिर जाता है। 70 के दशक में उन्होंने मैट्रिक तक कि शिक्षा मुफ़्त में की, जिससे पिछड़ों को बहुत लाभ मिला और शिक्षा उनके घर तक पहुँची।
जननायक आज की माँग
आज पूरे देश में जातीय जनगणना की बात चल रही है, ओबीसी के वर्गीकरण की बात चल रही है, इस तरह की कोशिशें कर्पूरी ठाकुर पचास वर्ष पूर्व कर चुके है। कर्पूरी ठाकुर पहले व्यक्ति थे जिन्होंने अत्यन्त पिछड़ा वर्ग (EBC) के विकास पर ज़ोर दिया, उन्होंने EBC को एक पृथक कैटेगरी के रूप मे स्थापित किया। पिछले वर्ष जब बिहार के जातीय जनगणना का परिणाम जारी किया गया तब देश के सवर्णों के बीच मे हाहाकार मच गया, आंकड़ो ने यह साबित कर दिया कि राज्य में 60 प्रतिशत से भी ज्यादा आबादी ओबीसी की है और उनमें भी ईबीसी की आबादी सर्वश्रेष्ठ है- 35 प्रतिशत। यह आंकड़े पूरे देश का ईबीसी कैटेगरी की ओर ध्यान आकर्षित किया, और देश के साथ-साथ अन्य राज्यों में भी ओबीसी के वर्गीकरण की मांग उठी।
ईबीसी जो देश की सबसे बड़ी आबादी है, लेकिन आज के दौर में रोजगार से लेकर शिक्षा तक इनकी हिस्सेदारी कम है, ऐसे में कर्पूरी ठाकुर का व्यक्तित्व उन सभी दबे-कुचलों समुदाय के लिए प्रेरणा का श्रोत है कि यदि कर्पूरी ठाकुर साठ के दशक में कांग्रेस की मजबूत सरकार के खिलाफ खड़े हो सकते तो आज 21वीं शताब्दी में हम क्यों नहीं सामाजिक अन्याय के खिलाफ खड़े हो सकते है।
ऋतु,
नेशनल कॉर्डिनेटर, AIOBCSA