जलते घर और छः महीने के दलित बच्चे की लाश, 23 साल बाद मिला न्याय

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Pic Credit : Amar Ujala

मथुरा का एक छोटा सा गांव है दतिया, यहां पर 23 साल पहले पंचायती जमीन पर कब्जे को लेकर सवर्ण और दलितों में जातीय संघर्ष हुआ जिसमें एक बच्चे और एक युवक समेत बहुत सारे दलित लोग चोटिल हुए। मथुरा के Additional जज मनोज कुमार मिश्रा की SC/ST कोर्ट ने फैसला सुनाया है, 15 लोगों को आजीवन कारावास व सभी पर 73-73 हजार रुपए का जुर्माना लगाया।

समाज समय समय पर अपने रूढ़िवाद सोच का उदाहरण देते रहता है। समाज ऊंच-नीच, सवर्ण-दलित, अमीर-गरीब और भी बहुत सारे असमानताओं में बटा हुआ है। अगर इतिहास भी पढ़ें तो हमें देखने मिलता है की बुद्ध और जैन धर्म का भी इन्हीं असमानताओं से निपटने के लिए उजागर हुआ था। खैर इससे हमारी छूत-अछूत की सोच तो खत्म नहीं हुई बल्कि नया धर्म जरूर बन गया। अगर हम तब से लेकर अब की परिस्थितियों को देखें तो आज भी कई गावों से लेकर हमारे बड़े शहरों के बड़े बड़े दफ्तरों में भी जातिवाद की बु आ ही जाती है। सवर्ण अपने आप को सबसे ऊपर दिखाना चाहते हैं तो वहीं दलित व पिछड़ा जाति ऊपर आने के लिए संघर्ष कर रही है।

हमारा देश बुलेट ट्रेन जैसी फास्ट ट्रेन पर काम कर रहा लेकिन देश में न्याय अभी भी उतनी ही धीरे है जितनी थी। रोते बिलखते दलित अपने परिवारजनों को खोने के बाद दोषियों को सजा दिलाने के लिए 23 साल तक भटकते रहे, न्याय के लिए अगर इतना इंतजार करना पड़े तो न्याय अन्याय से कम नहीं होता। खैर बुराई पर अच्छाई की जीत होती है चाहे वो दलित हो या सवर्ण। उम्मीद है की परिवार वालों और दलित समाज को ये देर से मिली जीत भी एक उम्मीद की किरण लगी होगी जिससे समाज में ऊपर आने का रास्ता दिखा होगा।