“कारवाँ”

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Pic credit: Vikash

“इक सफर है
कई कहानियाँ हैं
श्रृंगार है – विरह है
मोती जैसे आँसू हैं
सूखे अधरों पर सहज मुस्कान है
रंगमंच है
नाटक है
किरदार हैं
पर सभी मशरूफ़ हैं।
इक जिंदगी है
कई पहलू हैं
उलझन है
तूफान है
बारिश है
फिसलन है
उन्मुल है इतिश्री है
पर साथ नहीं हैं।
इक मंज़िल है
कई रास्ते हैं
धूप है
पसीना है
किसी का दिन है
किसी की रातें हैं
पर
कोई किसी का नहीं है।

फिर से
एक नया सफ़र है
नई मंज़िल है
नये रास्ते हैं
नये सपनें हैं
नई-सी हँसी है
सब अपने से हैं
खुदगर्जी का नामों निशां नहीं है
सिर्फ़ प्रेम है
निश्छल, विह्वल और सरल
कोई अपेक्षा नहीं है
है तो बस
समर्पण, निष्ठा और सरलता
मिलन का सुख नहीं

बिछड़ने का गम
बस
इक सुकून है
उस
थोड़े से वक़्त का
जहाँ तुम और मैं
जैसे सुबह और शाम
यूँ की प्रकृति और पुरुष
एक साथ
आस-पास
हाथ पे हाथ
फ़िर
चांदनी रात
जैसे लैम्प पोस्ट की धुंधली सी
रोशनी
और पहाड़ी झरने की आवाज़ में
कहीं खोयी
एक छोटी सी मुस्कान”।

– विवेक श्रीवास्तव