माँ-बाप

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Credit : pexels

वो दो लोग
दौर ज़िन्दगी का भुला न सकूँगा,
अपने माँ-बाप के त्याग को,
मैं कभी भी चुका न सकूँगा ।

कष्टों को झेल कर जो उन्होंने,
मुझे सींचा है, उनके तपस्या को,
मैं कभी अणु मात्र भी पा न सकूँगा ।

हर दर्द को चुपचाप सहने वाले,
हाड़-माँस के ईश्वर की मूरत को,
मैं दर्दों का हिसाब पा न सकूँगा ।

आँखों में फैली ममता की गहराई,
निर्मल ह्रदय से बुलाती आवज़ को,
मैं कभी भी अनसुना न कर सकूँगा ।

दोनों के बिना ये धरती अधूरी है,
और अधूरी है ये सारी दुनिया,
मम्मी-पापा आपके बिना मैं शायद,
ही एक दिन भी ख़ुश रह सकूँगा ।

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