बाबासाहेब ने किया था देश का पहला जल आंदोलन

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Pic credit: Forward Press

#DalitHistoryMonth

भारत जब आज़ादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब देश में में एक ऐसा तबका था जो अपने लिए अंग्रेजो के साथ –साथ देश के उच्च जातियों से भी आज़ादी की लड़ाई लड़ रहा था। सन 1924 तक देश के अछूतो को किसी भी सार्वजनिक तालाब से पानी पीने का अधिकार नही था। औपनिवेशिक शासन के दौरान समाज सुधारक श्री एस. के. बोले ने बंबई विधान मंडल से एक बिल पारित करवाया जिसके तहत सरकार द्वारा संचालित संस्थाएं – अदालत, विद्यालय, नदी, विश्विद्यालय सभी सार्वजनिक स्थानों पर अछूतों को प्रवेश और संसाधनों का उपयोग करने की अनुमति मिली।

महाराष्ट्र के कोलाबा जिले में महाड़ में स्थित चवदार तालाब में ईसाई, मुसलमान, पारसी, पशु, सभी को इजाजत दी उस तालाब के इस्तेमाल की, लेकिन केवल वहां के अछूत ही उस पानी का इस्तेमाल नही कर सकते थे।

यहां तक की नगरपालिका के आदेश आने के बाद भी अछूतों का वहा प्रवेश वर्जित था। इस बात की सूचना जब BR Ambedkar को दी गई, तब उन्होंने उसी स्थान पर एक कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया, वहां जा कर स्थानीय नेताओं से मुद्दे को समझने की कोशिश की, उन्होंने स्थानीय लोगो से कॉन्फ्रेंस के प्रति जागरूकता फैलाने को कहा, जिसके बाद करीब कॉन्फ्रेंस में 2500 लोग शामिल हुए, कॉन्फ्रेंस की अगली सुबह BR Ambedkar और उनके सहयोगी चवदार टैंक की ओर मार्च किए, जहां उन्होने तालाब में उतर कर अपने हाथों से पानी पिया।

उसके बाद जब यह खबर आस–पास के इलाके में फैली, तब सवर्णों ने 108 घड़े गौमूत्र से इस तालाब की शुद्धि करवाई, लेकिन आंबेडकर ने इन निंदाओं को किनारे रख, 26 दिसंबर 1927 को एक सत्याग्रह की घोषणा महाड़ में की, जिसके बाद सवर्ण अदालत तक गए और उस तालाब के बारे में अर्जी दी कि यह एक निजी तालाब है, जिसका इस्तेमाल सभी नही कर सकते है। इसके बाद अदालत ने इसके सार्वजनिक इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा दिया। जब BR Ambedkar अपने साथियों के साथ वहां पहुंचे तब पुलिस ने उन्हें कोर्ट के आदेश को दिखाया इसके बाद सभी लोगों ने मिलकर विचार किया कि सत्याग्रह को जारी रखा जाए या नहीं, और आंबेडकर के सलाह पर सत्याग्रह को स्थगित किया गया, और पिछली बार की तरह इस बार चवदार टैंक से पानी नही पिया गया।

उसके बाद BR Ambedkar ने एक संदेश दिया कि हमारी लड़ाई अदालत से नही है, और हम अभी उस स्थिति में नहीं है कि अदालत से लड़ाई लड़े, हमारी लड़ाई यहां की जाति व्यस्था से है, हमे उच्च जातियों को यह कर दिखाना है कि हम अछूत एक साथ है।

20 मार्च 1927 दलित इतिहास का एक ऐतिहासिक दिन है, जिस दिन बाबासाहेब ने यह कर दिखाया कि देश के सारे प्राकृतिक संसाधनों पर सभी का हक़ है, और कोई भी जाति व्यस्था किसी का हक नही छीनेगी।