पितृसत्तात्मक व्यवस्था, यौन अपराध: क्या देश के हरेक फ़िल्म इंडस्ट्री को हेमा कमिटी की जरूरत है?

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Pic credit: News9live

हाल ही में देश के केरल राज्य में हेमा कमिटी की रिपोर्ट को लोगों के बीच में लाया गया है, इस रिपोर्ट के आते ही मलयालम फिल्म इंडस्ट्री से लेकर हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में भी बवाल मच गया है। पिछले दस दिनों से यह रिपोर्ट चर्चा में है जिसमें कुछ ऐसे खुलासे किए गए हैं जो महिलाओं के सुरक्षा पर अहम सवाल खड़े करते है।

खास तौर पर उन महिलाओ की सुरक्षा पर बड़े सवाल खड़े करते है जो समाज के निचले तबके से आती है, जिनके साथ किसी भी प्रकार की ज्यादती होने पर कोई नही साथ देने आता है।

आखिर क्या है हेमा कमिटी?

वर्ष 2017 में मलयालम फिल्म इंडस्ट्री की मशहूर अभिनेत्री का अपहरण कर लिया गया था, और चलती हुई कार में उनके साथ शारीरिक छेड़खानी की गई और उसका फिल्मांकन भी किया गया, बाद में इस घटना में एक मशहूर अभिनेता का भी नाम आया जिन्होंने बदला लेने किया ऐसी अश्लील साजिश रची। इस घटना का केरल में पुरजोर विरोध हुआ, जिसके बाद वूमेन इन सिनेमा कलेक्टिव (WCC) का निर्माण हुआ जिन्होंने यह पिटीशन दाखिल किया कि सरकार फ़िल्म इंडस्ट्री में महिलाओं के साथ हो रहे यौन अपराधो की जांच करे। इस पिटीशन के बाद सरकार ने रिटायर्ड जस्टिस हेमा के नेतृत्व में 3 सदस्यों की एक समिति का गठन किया। यह समिति वर्ष 2019 में 296 पेज की रिपोर्ट सरकार को सौंपी, यह रिपोर्ट 18 अगस्त 2024 तक पब्लिक डोमेन में नही थी, लेकिन लोगों के दवाब और आरटीआई के तहत 5 सालों के लंबे इंतजार के बाद यह रिपोर्ट को पब्लिक डोमेन में लाया गया है जिसके अभी भी 50–55 पेज को सार्वजनिक नही किया गया है क्योंकि सरकार का ऐसा मानना है कि इससे कुछ महिलाओं की निजता भंग हो सकती है इसलिए उन पन्नों का पब्लिक डोमेन में आना उचित नहीं है।

जानिए हेमा कमिटी के खुलासे

हेमा कमिटी की रिपोर्ट में ऐसे खुलासे किए गए हैं जो मलयालम फिल्म इंडस्ट्री में लैंगिक असमानता के बारे में जानकारी देते है। इस रिपोर्ट में यह बताया गया है कि इस इंडस्ट्री में कुछ पुरुषों का वर्चस्व स्थापित है, जो महिलाओं से अनैतिक मांग करते है, जिसमें 17 तरीके से महिलाओं को शोषण किया गया है। महिलाओं को फ़िल्म देने के बहाने उनसे सेक्सुअल फेवर मांगते है, उनसे बदला लेने के लिए डायरेक्टर बार–बार इंटिमेट सीन्स को रिपीट करने के लिए बोलते थे। महिला अभिनेत्रियों के साथ छेड़खानी, दुष्कर्म आम बात है। साथ ही साथ यह भी बताया गया है कि महिला और पुरुष के वेतन में काफी अंतर है, महिलाओं को पुरुषों की तुलना में बहुत कम पैसे दिए जाते हैं। कुछेक लीड एक्टर्स को छोड़कर महिलाओं के लिए अच्छे कमरे, बाथरूम, चेंजिंग रूम की व्यवस्था नही है।

इन खुलासों के बाद सोशल मीडिया पर फिर से मि टू ट्रेंड हुआ जिसके बाद मलयालम फिल्म इंडस्ट्री से लेकर तेलुगु, तमिल, बंगाली एक्ट्रेसेज ने अपनी आप बीती को सोशल मीडिया के जरिए सुनाया, और कहा कि ऐसी जांच हर फ़िल्म इंडस्ट्री में होनी चाहिए।

क्या ऐसी कमिटी महिलाओं को न्याय दिला पाएगी?

हेमा कमिटी देश की पहली ऐसी कमिटी है जो फ़िल्म इंडस्ट्री में महिलाओं के साथ हो रहे यौन उत्तपीड़न पर आधारित है। इसकी मांग इसलिए हो रही है कि फ़िल्म इंडस्ट्री की काली सच्चाई सामने आए और महिलाओ के लिए एक सुरक्षित इंडस्ट्री बने। ऐसी कमिटी की सलाह स्वागत योग्य है। लेकिन फ़िल्म इंडस्ट्री में महिलाओं का उत्पीड़न रोकने के लिए और लैंगिक मतभेद को मिटाने के लिए एक कमिटी की स्थापना होना काफी है?

वर्ष 2017 में हॉलीवुड से लेकर बॉलीवुड हर जगह मि टू मूवमेंट चला, जिसमें फिल्म अभिनेता नाना पाटेकर से लेकर फ़िल्म निर्माता साजिद खान तक पर आरोप लगे, इस लिस्ट में आलोकनाथ, भूषण कुमार, कैलाश खेर, अनु मलिक के नाम चौंकाने वाले थे, कुछ दिनों तक यह सारे नामचीन लोग चका–चौंध की दुनिया से दूर रहे फिर वह उसी तरीके से काम करने लगे, नाहीं इनका सोशल बायकॉट हुआ नाहीं इनका काम बंद।

एक ऐसी कमिटी बननी चाहिए जो देश के सारे फ़िल्म इंडस्ट्री की जांच करे, और उनके रिपोर्ट, सलाह पर सरकार को ईमानदारी पूर्वक काम करना चाहिए, महिला सुरक्षा पर हमारे देश में बहुत कानून है, वर्क प्लेस पर सेक्सुअल क्राइम्स को रोकने के लिए विशाखा गाइडलाइन जारी की गई है, लेकिन इनमें से कुछ भी फ़िल्म इंडस्ट्री में लागू क्यों नही होता?

यदि कोई लड़की फ़िल्म प्रोड्यूसर्स पर सेक्सुअल फेवर का आरोप लगाती है तो उसको न्याय मिलने के बजाए उसकी रोजगार को बंद कर दिया जाता है, उसको चारो तरफ़ से बायकॉट कर दिया जाता है। यदि किसी लीड एक्टर को किसी जूनियर एक्ट्रेस पर किसी बात से नाराज़गी होती है तो उसके साथ बार –बार इंटिमेट सीन्स रिपीट कराया जाता है। यदि कोई महिला किसी सीन को करने से मना कर देती है तो फ़िल्म से उसके सारे सीन कटवा दिए जाते है? हर ऑफिस में जब पॉश, पोक्सो, विशाखा गाइडलाइन फॉलो होता है तो आखिर फिल्म इंडस्ट्री इससे अछूता क्यों है?

केरल में भी ऐसी घटनाएं होती हैं?

लोग इस बात पर आश्चर्य जता रहे है कि यह सब केरल में कैसे हो सकता है , केरल तो इतना समृद्ध है शिक्षा स्तर इतने अच्छे हैं। इस देश को यह समझना होगा कि पेपर पर हम कितने भी शिक्षित बन जाए, लेकिन केरल में आज भी पितृसत्तात्मक व्यवस्था विद्यमान है, और इंडस्ट्री को 20–25 शक्तिशाली पुरुष ही चलाते हैं, जो महिलाओ को आज भी एक वस्तु का प्रतीक मानते हैं।

हेमा कमिटी की रिपोर्ट इस बात को दर्शाती है कि समाज कितना भी आर्थिक–राजनीतिक रूप से सक्षम हो जाए लेकिन यदि वह समाजिक रूप से पिछड़ा है तो महिलाओ का शोषण होते रहेगा।

इसका दूसरा पहलू यह भी है कि आज केरल शिक्षित है तभी शिक्षित और जागरूक महिलाएं फ़िल्म इंडस्ट्री का हिस्सा बनी और WCC जैसे समूह का निर्माण हुआ और नतीजन हेमा कमिटी की रिपोर्ट हमारे समक्ष आई। WCC जैसे समूह भारत के हरेक फ़िल्म इंडस्ट्री की जरूरत है, जिसके माध्यम से प्रत्येक वर्ग की महिलाएं एक साथ जुड़ सकती है और किसी भी तरीके के अन्याय के खिलाफ़ आवाज उठा सकती है।

इस पूरे प्रकरण में एक बात साफ़ होती है राज्य सरकारों के साथ –साथ केंद्र सरकार भी एक जांच समिति बनाए और महिलाओ के साथ हो रहे अपराधो पर लगाम लगाए और सिनेमा की दुनिया को समान बनाए जहां ऊंचे तबके से लेकर नीचे तबके तक की महिलाओ का सम्मान हो और उन्हें सेक्स टूल न समझ एक कलाकार समझा जाए, जहां उनकी पहचान उनकी कला से हो, न की उनके सेक्सुअल अवेलबिलिटी पर हो।

ऋतु, नेशनल कोऑर्डिनेटर (AIOBCSA), सामाजिक न्याय जाति एवं लिंग के विषय में रूचि रखती है.