यही सच है….

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जब इस छोटे से वाक्य को पढ़ते हैं तो हमें बहुत ही सामान्य वाक्य लगता है क्योंकि ऐसे वाक्यांश हम रोजमर्रा के जीवन में इस्तेमाल करते है, ऐसे वाक्यांश सुनते –बोलते वक्त हमें ध्यान भी नहीं रहता कि इनमें भी गहरे भाव छुपे हो सकते है। एक दिन ऐसे ही शाम में दोस्तों के साथ चाय की चुस्की ले रहे थे तभी बातों–बातों में मैंने हंसते हुए यह वाक्य बोल दिया कि ’यही सच है’ तभी सामने बैठा हुआ सहकर्मी रूपी दोस्त ने कहा कि तुम्हें सच में मन्नू भंडारी की यह रचना पढ़नी चाहिए– यही सच है। उस दिन तो मैंने बहुत ध्यान नही दिया और अनमने भाव से कह दिया कि पढ़ लूंगी। ऐसे ही कई शामें बितती गई, चाय और हँसी–ठहाकों का सिलसिला भी जारी रहा और कभी –कभी इन हँसी–ठहाकों और चाय की चर्चाओं के बीच में मैं अपने जीवन में चल रहे उधेड़बुन को भी सुना दिया करती थी और यों ही मेरे सहकर्मी बोल देते थे कि आप ‘यही सच है‘ क्यों नहीं पढ़ती।

एक दिन जीवन के उधेड़बुन और ऑफिस के निराशाभरी दोपहर ने मुझे यह कहानी को गूगल करने पर मजबूर कर दिया, वैसे मैं उपन्यास, कहानियां हमेशा हार्डकॉपी में पढ़ना पसंद करती हूं लेकिन उस दिन के खालीपन ने मुझे इसे ऑनलाइन पढ़ने पर मजबूर कर दिया और जब इस कहानी को पढ़ना शुरू किया तब मैं हार्डकॉपी और सॉफ्टकॉपी का अंतर भूल गई थी मेरी निगाहें लैपटॉप स्क्रीन पर ही चिपकी रही और मैं कानपुर, कलकत्ता और पटना की गलियों की सैर करने लगी।

कहानी की शुरुआत संजय और दीपा के नोकझोक से होती हैं और उनके नोकझोक में पता नहीं क्यों मुझे इतनी रुचि आ गई बार –बार मन में यह सवाल उठता कि क्या ऐसा मेरा भी स्वभाव है? दीपा के मन में चल रहे कश्मकश में मैं खुद को क़रीब पाई और बार –बार खुद से यहीं सवाल करती रहीं कि क्या ऐसी दुविधा का शिकार मैं भी हूं? क्या किसी एक व्यक्ति से प्रेम में रहकर दूसरे के प्रति आसक्त होना स्वाभाविक है? और यदि ऐसा होता है तो इसमें गुस्ताख़ी खोजी जा सकती हैं? निशीथ, दीपा एवं संजय की यह कहानी मन में चल रहे अनेक अंतर्द्वंद्व को दूर करती हैं जैसे प्रेमी और पूरक के बीच का अंतर, प्रेम और आसक्ति में अंतर, प्रेम एवं आकर्षण में अंतर और इन सभी अंतर्द्वंद्व को मन्नू भंडारी ने ग़लत नहीं ठहराया है और उन्होंने बताया है कि शायद इन अंतर्द्वंद्व में अपने लिए रास्ता बनाना ही सच है और यही सच है।

मन्नू भंडारी की यह कहानी केवल साहित्य का ही हिस्सा नहीं है, यह कहानी आमजीवन में चल रहे परेशानियों के बीच औषधि का काम करती हैं जो लोगों को इस अपराधबोध से बाहर निकालती है कि किसी व्यक्ति के प्रति आसक्त, आकर्षण और भाव रखना जीवन की एक साधारण प्रक्रिया का हिस्सा है, और यही सच है।

  • ऋतु, समाजिक कार्यकर्ता, विश्लेष्क